Medha Patkar: संसदीय समिति में मेधा पाटकर को बुलाने पर बवाल, भाजपा सांसदों ने बैठक छोड़ी

भाजपा ने मेधा पाटकर को बताया देशद्रोही, कांग्रेस ने किया निर्णय का बचाव

संसद की स्थायी समिति की बैठक मंगलवार को उस समय विवादों में घिर गई जब भाजपा सांसदों ने प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर को बुलाने का विरोध किया। इस विवाद के चलते बैठक को बीच में ही स्थगित करना पड़ा। भाजपा सांसदों ने आरोप लगाया कि पाटकर ने सरदार सरोवर बांध के विरोध में प्रदर्शन कर देश के विकास के खिलाफ काम किया है, इसलिए उन्हें समिति में विचार व्यक्त करने के लिए नहीं बुलाया जाना चाहिए था।


🔹 विवाद की शुरुआत कैसे हुई?

समिति की अध्यक्षता कर रहे कांग्रेस सांसद सप्तगिरी शंकर उलाका ने भूमि अधिग्रहण कानून (2013) की समीक्षा के लिए मेधा पाटकर को आमंत्रित किया था। जैसे ही पाटकर बैठक में पहुंचीं, भाजपा सांसदों ने उनकी मौजूदगी पर आपत्ति जताई और बैठक से वॉकआउट कर दिया।


🔹 भाजपा का आरोप: “देशद्रोही” को बुलाना गलत

भाजपा सांसदों का कहना था कि:

  • मेधा पाटकर ने सरदार सरोवर बांध की ऊंचाई बढ़ाने का विरोध कर विकास के खिलाफ काम किया।

  • उन्हें देशद्रोही कहा गया और समिति में शामिल होने को अनुचित ठहराया गया।

  • एक सांसद ने कटाक्ष करते हुए कहा, “अगर ऐसे लोगों को बुलाना है, तो पाकिस्तान के नेताओं को भी बुला लो।”


🔹 कांग्रेस का बचाव: लोकतंत्र में सभी की राय जरूरी

कांग्रेस सांसद सप्तगिरी उलाका ने कहा कि:

  • विभिन्न हितधारकों को सुनना संसदीय प्रक्रिया का हिस्सा है।

  • पाटकर जैसे समाजसेवकों को बुलाना अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नीति निर्माण में विविध राय को दर्शाता है।

  • उन्होंने कहा कि बैठक इसीलिए स्थगित की गई क्योंकि कोरम पूरा नहीं हो पाया


🔹 मेधा पाटकर का बयान

मेधा पाटकर ने कहा कि:

  • उन्होंने पहले भी कई बार संसदीय समितियों में अपनी बात रखी है।

  • लेकिन इस बार का अनुभव काफी नकारात्मक रहा।

  • उन्होंने लोकतांत्रिक संस्थाओं में इस तरह के व्यवधान को दुर्भाग्यपूर्ण बताया।


🔹 क्या कहता है संसद का प्रोटोकॉल?

  • संसदीय समिति के अध्यक्ष को अधिकार होता है कि वे विशेषज्ञों और हितधारकों को आमंत्रित करें।

  • हालांकि, सदस्यों से सलाह ली जा सकती है लेकिन यह अनिवार्य नहीं होता

📌 निष्कर्ष:

यह विवाद भारतीय लोकतंत्र की जटिलताओं को उजागर करता है, जहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और राजनीतिक असहमति के बीच संतुलन बनाना एक चुनौती है।

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